आज देश सबसे बड़ी चिंता लोकतंत्र का एक पैर अपाहिज होता जा रहा है। लोक तंत्र का मजबूत स्तंभ कहे जाने वाली मीडिया का अस्तर गिरता जा रहा है। भारतीय पत्रकारिता का वजूद खतरे है जबकि कुछ वरिष्ठ पत्रकार इसे बचाने की भरपूर कोशिस कर रहे है लेकिन उन्हें भ्रष्ट सिस्टम द्वारा दरकिनार कर दिया जाता है। आज की पत्रकरिता राजनितिक पार्टीगत हो गयी है। पत्रकार राजनितिक दलों से संबंध रखने लगे है। अब तो किसी भी समान्य व्यक्ति से पूछिए की आपको भारतीय मीडिया के बारे में क्या सोचते है सीधा जबाब मिलता है मीडिया बिकाऊ है। यह समाज और देश दोनों के लिए वड़ा खतरा है। समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया जायेगा और मीडिया को राजनितिक पार्टियों और कारपोरेट घरानो के इसारे पर चलने से नहीं रोका गया लोकतंत्रा का सबसे मजबूत स्तंभ अपाहिज हो जायेगा।
हालही में विश्व के मीडिया रैंकिग में भारत का नम्बर 136 वे स्थान पर था। जबकी पिछले साल मीडिया का स्थान 133 पर था। इससे भारतीय मीडिया में अब तक कुछ प्रभाव नहीं दिखाई दे रहा है। जबकि ये पत्रकारिता को सर्मसार होना पड़ा था। इसको लेकर ट्विटर यूजर द्वारा ट्रेंड चला भारतीय मीडिया पर सवाल उठाया था। अक्सर लोगो का मानना है की आजकल समाचार पत्रों और टीवी चैनलों को देख कर कोई भी कह सकता है की भारतीय पत्रकारिता का क्या अस्तर है। जानकारों का मनना है कि न्यूजरूम में खबरे मरती है और झूठ का अम्बार फैलाया जाता है।
रक्षित सिंह ने इस्तीफ़ा एक चैनल से नहीं गोदी मीडिया के वातावरण से दिया है - Ravish Kumar
आपका टीवी स्क्रीन दिन-रात भले ही अफवाहों के गोले आपकी ड्राइंगरुम में गिराता हो नफरत और हिंसा से फूलदान के फूल का सौन्दर्य लील जाने की कोशिश करता हो जिस पड़ोसी की शक्ल देखकर आप खुश हो जाते हों, उन्हें आए दिन शक के कटघरे में रखकर पेश करता हो लेकिन सच तो ये है कि बूचड़खाने में तब्दील हो चुके इस न्यूजरुम में रोज सच समाचार मर जाते है।
अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ रहे छात्र लगातार कह रहे हैं कि रमजान के दौरान उन्हें कहीं कोई दिक्कत नहीं हो रही, समय से खाना-पीना मिल रहा है। एक ने तो यहां तक लिखा कि आप यहां आते हैं तो सहरी भी मिलेगा, खत्म होने पर अपने हिस्से का दे देंगे। लेकिन मीडिया ने जिस आक्रामकता से फेक और प्रोपेगेंडा को खबर बनाकर पेश किया कि यहां के हिन्दू छात्रों को खाना नहीं मिल रहा, इन छात्रों की बातों को प्रसारित करने में सुस्त है,ऐसा इसलिए कि इनकी बात उनकी एकतरफा पैकेज को मिट्टी में मिला दे रहे हैं। इस देश में ढहती यूनिवर्सिटी और उच्च शिक्षा पर ढंग से अध्ययन किया जाएगा तो कारोबारी मीडिया की भूमिका खलनायक के तौर पर सामने आएगी।
Post a Comment
Thanks For Visiting and Read Blog