क्या तिरंगे के नीचे खड़ा होकर कोई झूठ बोल सकता है? : Ravish Kumar









नोट बंदी के चलते देश की गिरती अर्थ ब्यवस्था पर रविश कुमार अपने पेज लिखते है कि अर्थव्यवस्था में गिरावट किसी के लिए अच्छी ख़बर नहीं है। इसका नुकसान सभी को उठाना पड़ता है। फेसबुक पेज पर यहां वहां से जुटा कर आर्थिक ख़बरों को पेश करता रहता हूं। ट्रोल को इससे तकलीफ होती है क्योंकि हिन्दू-मुस्लिम प्रोपेगैंडा में छेद हो जाता है। सरकार से नहीं कहते कि ऐसा क्यों हैं। मुझसे कहते हैं कि मैं ही नकारात्मक हो गया है। मुझे हंसी आती है। नकारात्मकता मुझमें नहीं, अर्थव्यवस्था के आंकड़ों में हैं। मैंने नोटबंदी पर जो शो किया उसमें एक ही पहलू नहीं था। उसमें दो पहलू थे। एक ज़ोर ज़ोर से बोले जाने वाले झूठ और दूसरा झूठ को चुनौती देने वाले आंकड़े।





बोगस नारों और झूठे आंकड़ों के पोस्टर फटने लगे हैं। फिक्स डिपाज़िट पर ब्याज़ कम हो गई है, बैंक आपसे ही सुविधा शुल्क ले रहे हैं। रिटायर लोगों की आमदनी चरमरा रही है। बैंकों की हालत ख़राब है। अच्छी बात है कि अब लोग 75 और 78 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल ख़रीदकर भी ख़ुश हैं। सरकार इनदिनों आयकर वसूली के आंकड़ों का भी ख़ूब प्रचार करती है। इसमें भी तीन प्रकार के आँकडें आ रहे हैं । दि वायर के एम के वेणु ने कहा कि 56 लाख नए करदाता नहीं बढ़े हैं बल्कि इतने लोग ई-फाइलिंग में शिफ्ट हुए हैं, जो कि पहले से चली आ रही है प्रक्रिया के तहत हो रहा है। अगर यह बात सही है तो यह कितना दुखद है कि 15 अगस्त के दिन भी झूठ बोला गया। प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त की गरिमा को ठेस पहुँचाई है।

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नोटबंदी के कारण ख़ुद भारतीय रिज़र्व बैंक की कमाई आधी से कम हो गई है। गवर्नर उर्जित पटेल किसी विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर जैसे लगते हैं। लगता ही नहीं कि वे स्वायत्त संस्था के प्रमुख हैं। जब 13 दिसंबर को भारतीय रिज़र्व बैंक ने 80 फीसदी नोट गिन लिए थे तो उसके बाद बाकी के तीन लाख गिनने में ढाई सौ से अधिक दिन क्यों लगे। किसके लिए वे अपनी संस्था की साख दांव पर लगा रहे थे? रोज़ बताया जा रहा है कि जीएसटी से वसूली उम्मीद से ज़्यादा बढ़ी है। 92 हज़ार करोड़ हो गई है। फिर जब जीडीपी की दर गिर जाती है तो जीएसटी को क्यों ज़िम्मेदार बताते हैं? ये जो 92 हज़ार करोड़ की वसूली हुई है, तो इसका असर जीडीपी के आंकड़ों पर क्यों नहीं दिखता है?




पिछले साल अप्रैल-जून 2016-17 में जीडीपी 7.9 फीसदी थी, इस साल 5.7 हो गई। वित्त मंत्री जेटली ने कहा है कि यह चिंता की बात है। हमें नीतियों और निवेश के मोर्चे पर काम करने की ज़रूरत है। अभी तक इन दोनों मोर्चे पर क्या हो रहा था? तीन साल निकल गए हुज़ूर। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में भी ग्रोथ 1.2 फीसदी कम हो गया है, जनवरी से मार्च के बीच यह 5.2 प्रतिशत था। 2016 के अप्रैल से जून के बीच यह 10.7 फीसदी था। मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया का स्लोगन हवा में उड़ चुका है। आप इसकी हालत ज़मीन पर खुद जाकर चेक कीजिए। धांधलियों की दास्तान से आपको शर्म आएगी।




अगर मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर एक साल में 10 फीसदी के ग्रोथ से 1.2 फीसदी के ग्रोथ से आ गया है तो आप खुद समझ सकते हैं कि नौकरियों पर क्या असर पड़ा होगा। प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से चालीस लाख नौकरियां देने वाला टेलिकाम सेक्टर चरमरा रहा है। बिजनेस स्टैंडर्ड में राजन एस मैथ्यू ने लिखा है कि अगले 12 से 18 महीने के भीतर 10 लाख नौकरियां समाप्त हो जाएंगी। 10 लाख लोगों की नौकरियां जाने वाली हैं, नई भर्तियां नहीं हो रही हैं तो आप बताइये कि इसमें पोज़िटिव क्या लिखूं।


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दि वायर ने एक स्टोरी की है कि किस तरह नोटबंदी की सनक और झूठ पर पर्दा डालने के लिए अनेक ट्वीटर हैंडल से एक ही मेसेज ट्वीट कराया जा रहा है। MEDIAVIGIL ने भी अख़बारों का विश्लेषण कर बताया है कि किस तरह आपके हिन्दी के अखबारों ने नोटबंदी की नाकामी को किनारे लगा दिया। किसी गुप्त कारख़ाने से हर दिन एक प्रोपेगैंडा ठेल दिया जा रहा है। एक ईवेंट के बाद दूसरा ईवेंट। उसे हाई-स्केल पर कवर किया जाता है, विश्लेषण होता है, ताकि कुछ भी आपकी स्मृतियों में न ठहरें। लगातार एक ही धारणा बनी रहे तभी जब ऐसे आंकड़े सामने रख दिए जाते हैं तो आपको धक्का लगता है।


रविश कुमार 

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