जिसकी जेल यात्रा को PM के काफिले की शान बख्शी गयी हो उससे दो साध्वी किस हिम्मत से लड़ी ? : रविश कुमार







निर्भया के लिए रायसीना हिल्स को जंतर मंतर में बदल देने वाली हिन्दुस्तान की बची हुई बेटियाँ नोट करें कि दो साध्वी ने कैसे ये लड़ाई लड़ी होगी, जिसकी जेल यात्रा को प्रधानमंत्री के काफ़िले की शान बख़्शी गई। दोनों साध्वी किस हिम्मत से लड़ीं ? 







क्या आप जानती हैं कि जब वे अंबाला स्थित सीबीआई कोर्ट में गवाही देने जाती थीं तो कितनी भीड़ घेर लेती थी? हालत यह हो जाती थी कि अंबाला पुलिस लाइन के भीतर एस पी के आफिस में अस्थायी अदालत लगती थी। चारों तरफ भीड़ का आतंक होता था। जिसके साथ सरकार, उसकी दास पुलिस और नया भारत बनाने वाले नेताओं का समूह होता था, उनके बीच ये दो औरतें कैसे अपना सफ़र पूरा करती होंगी ? क्या उनके साथ सुरक्षा का काफिला आपने देखा? वो एक गनमैन के साथ चुपचाप जाती थी और पंद्रह साल तक यहीं करती रहीं। 



बाद में सीबीआई की कोर्ट पंचकुला चली गई। दो में से एक सिरसा की रहने वाली हैं, वो ढाई सौ किमी का सफ़र तय करते पंचकुला जाती थीं। और सिरसा के डेरे से निकल कर गुरमीत सिंह सिरसा ज़िला कोर्ट आकर वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिये गवाही देता था। तब भी आधी से अधिक गवाहियों में पेश नहीं हुआ।







साध्वी का ससुराल डेरा का भक्त है। जब पता चला कि बहू ने गवाही दी तो घर से निकाल दिया। इनके भाई रंजीत पर बाबा को शक हुआ कि उसी ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा जिस पर कोर्ट ने संज्ञान ले लिया। रंजीत की हत्या हो गई। गुरमीत पर रंजीत की हत्या का आरोप है। इस गुमनाम खत को महान पत्रकार राम चंद्र छत्रपति ने दैनिक पूरा सच में छाप दिया। उनकी हत्या हो गई। राजेंद्र सच्चर, आर एस चीमा, अश्विनी बख़्शी और लेखराज जैसे महान वकीलों ने बिना पैसे के केस लड़ा। 




Heart Touching Shayari, दिल को छू लेने वाली शायरी




सीबीआई के डीएसपी सतीश डागर ने साध्वियों का मनोबल बढ़ाया और हर दबाव का सामना करते हुए जाँच पूरी की। शुक्रवार रात साढ़े आठ बजे छत्रपति के बेटे अँशुल छत्रपति से बात हुई। फैसला आने तक उनके पास एक गनमैन की सुरक्षा थी। बाद में मीडिया के कहने पर चार पाँच पुलिसकर्मी भेजे गए। अँशुल ने कहा कि एक बार लड़ने का फैसला कर घर से निकले तो हर मोड़ पर अच्छे लोग मिले। तो आप पूछिये कि आज आपके नेता किसके साथ खड़े हैं? बलात्कारी के साथ या साध्वी के साथ ? आप उनके ट्वीटर हैंडल को रायसीना में बदल दीजिए। सरकार बेटियाँ नहीं बचाती हैं। दोनों साध्वी ने बेटी होने को बचाया है। सत्ता उनकी भ्रूण हत्या नहीं कर सकी। अब इम्तहान हिन्दुस्तान की बची हुई बेटियों का है कि वे किसके साथ हैं, बलात्कारी के या साध्वियों के ?




बिहार के युवाओं से संक्षिप्त संवाद, BSSC के बहाने - रवीश कुमार





इतना सब करने की जगह डेरा सच्चा सौदा को ही पंजाब और हरियाणा सौंप देना चाहिए था। वैसे भी इन प्रेमियों ने दो राज्य को डेरा में बदल ही दिया है। ये लोग चला लेते जैसे अभी चला रहे हैं। डेरा के आशीर्वाद से ही तो विधायक जीतते हैं जिससे सरकार बनती है। बाबा आराम से दोनों राज्य के मुख्यमंत्री बन सकते हैं। महत्वपूर्ण दलों के किसी बड़े नेता ने इनकी निंदा की है क्या? कौन करेगा? लोकसभा और विधानसभा का चुनाव साथ हो गया तो एक साथ जाने कितने उम्मीदवारों को डेरा ले जाने की ज़रूरत होगी। 



इसलिए शांति की अपील करते हुए सेना, अर्ध सैनिक बलों की तैनाती ही उत्तम रास्ता है। बस प्रतिष्ठा बचाने के लिए इतनी मेहरबानी कर दें कि जितने सैनिक चीन सीमा के पास डोकलाम में तैनात हैं, उससे तीस चालीस सैनिक कम हरियाणा पंजाब में तैनात किए जाएँ। इससे चीन का ईगो आहत नहीं होगा। डेरा बाबा से मेरी मामूली शिकायत है कि उनके भक्तों ने दूसरे वाले के भक्तों को कंफ्यूज़ क्यों कर दिया है! कोई ललकार नहीं पा रहा है।

How to Get More Traffic and Rank on Google step by step 2023


0/Post a Comment/Comments

Thanks For Visiting and Read Blog

Stay Conneted