बिहार के युवाओं से संक्षिप्त संवाद, BSSC के बहाने - रवीश कुमार

बिहार के युवाओं से संक्षिप्त संवाद, BSSC के बहाने - रवीश कुमार


ट्विटर पर ट्रेंड कराने से कुछ होता नहीं आप समय क्यों बर्बाद करते हैं । ट्विटर जवाबदेही और जागरूकता का मंच बना हुआ है। लोगों को लगता है कि ट्रेंड कराने से सरकार जाग जाएगी। जो सरकार आपको सुलाए रखने के लिए दिन रात मेहनत करती हो, वो भला ट्रेंड कराने से क्यों जाग जाएगी। थोड़ा तो रिसर्च कर लीजिए कि ट्विटर पर होने वाले ट्रेंड की क्या हालत है? वही हालत है जो जंतर मंतर या राज्यों के सचिवालय के बाहर होने वाले प्रदर्शनों की है। ट्विटर एक अतिरिक्त मंच भर है।


रही बात सरकारी भर्ती परीक्षाओं की तो उस पर मेरे पास नया बोलने के लिए कुछ नहीं है। जनता का काम वोट के समय दारू पैसा जाति और धर्म के आधार पर फ़ैसला करना रह गया है। कोई एक क़सूरवार नहीं है लेकिन सब एक दूसरे की गलती की सजा भुगत रहे हैं। राजनीति नीतियों को लेकर तो होती नहीं। इसलिए हर राज्य में इनदिनों खाते में पैसे भेजने की योजना है। केंद्र में भी है। स्कूल बर्बाद हो लेकिन ड्रेस के नाम पर तीन सौ रुपया आ जाए, अस्पताल न हो लेकिन बीमा कार्ड आ जाए तो लोग ख़ुश हो जाते हैं। वोट देने के लिए मार किए रहते हैं कि कुछ तो दिया। एक से एक घटिया नेता कई साल से चुनाव जीते जा रहे हैं। सबको दिख रहा है कि सारे संसाधनों पर उसका क़ब्ज़ा हो रहा है लेकिन सब मिलकर जीता रहे है।


तो यह एक दुश्चक्र है। जाति और धर्म, मूर्ति और स्मारक की राजनीति आपको इतना ही देगी। आप फँस गए हैं। ट्रेंड कराने या ख़बर छपने से कुछ नहीं होता। आप भी अख़बार पढ़ते ही हैं। आपको किसी और की ख़बर से फ़र्क़ पड़ता है? मैं एक उदाहरण के तौर पर कहता हूँ। धारा 370 ने हिन्दी प्रदेशों के युवाओं को बर्बाद कर दिया। और भी कारण हैं लेकिन इसके ज़रिए बताना चाहता हूँ कि एक राज्य की समस्या को लेकर अपने पड़ोस में नफ़रत फैलाने से पहले कितनों ने धारा 370 का अध्ययन किया होगा? लेकिन इसके नाम पर झुंड में सब बदल जाएँगे। राजनीति में जब तक फ़ैसले इसी तरह आवेश में लिए जाएँगे, नीतियों को समझने के अवसर पैदा नहीं होंगे।


बिहार ने साबित किया है कि रोज़गार मुद्दा नहीं है। पहली बार रोज़गार के सवाल पर चुनाव होता लगा लेकिन युवाओं ने यह मुद्दा समाप्त कर दिया। अगर यह मुद्दा सत्ता पलटने में सफल होता तो पूरे देश में कांग्रेस, बीजेपी, आप, तृणमूल सबकी सरकारों के होश उड़ जाते। भले ही नई सरकार रोज़गार नहीं देती लेकिन इस मुद्दे के डर से राजनीति काँपतीं।


मैं अपने प्राइम टाइम में कहता था कि रोज़गार के मुद्दे के लिए बिहार विधानसभा का चुनाव आख़िरी टेस्ट है। यह मुद्दा आप लोगों ने ही लाठियाँ खाकर खड़ा किया और आपने ही ख़त्म कर दिया। ऐसा ही मौक़ा 2019 में आया था जब रोज़गार मुद्दा बन रहा था लेकिन आप याद कीजिए कि उस मुद्दे को छोड़ आप क्या चर्चा कर रहे थे।मेरी बात सही साबित करने और मुझे नहीं सुनने का शुक्रिया।

मैं यक़ीन के साथ कह सकता हूँ कि आप जाति और धर्म की राजनीति में ही अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं। मैं तो इसके विरोध में हूँ लेकिन आपसे अपील नहीं करूँगा। मैं जानता हूँ कि आप वहीं करेंगे जिसमें आप श्रेष्ठ हैं। वही कीजिए। इसे सिर्फ़ निजी संदर्भ में न देखें बल्कि व्यापक संदर्भ में देखेंगे तो पता चलेगा कि सब वही कर रहे हैं। जाति और धर्म की राजनीति करते रहे, उसमें कम से कम मानसिक और बौद्धिक सुख तो मिलेगा।


अब मैं यहाँ बिहार के छात्रों द्वारा भेजे गए पत्र को पोस्ट कर रहा हूँ। अफ़सोस की उन्हें ये सब देखना पड़ रहा है। दुख होता है। ख़ैर ये रहा पत्र-
सहमति का विचार लोकतंत्र का आधार है, क्योंकि लोकतंत्र में व्यक्ति को महत्वपूर्ण समझा जाता है लेकिन अब तो लोकतांत्रिक मूल्यों को हत्या के साथ साथ मूल अधिकारों का भी हनन होने लगा है।


आजीविका का अधिकार सम्मानजनक जीवन जीने के लिए जरूरी है। क्या हम सच में सम्मानजनक जीवन जी रहे है?? कड़ी मेहनत और गलाकाट प्रतियोगिता के बीच एक अभ्यर्थी अपने जीवन जीने की कला को भी भूल चुका है। ऐसे में सरकार द्वारा पोषित चंद संस्थाएं हमारे जीवन को बद से बदतर बनाने पर तुली हुई है। BSSC अपनी बहाली को 7 साल से पूरा नहीं करवा पा रहा तो, *BCECE भर्ती की प्रकिया पूरी हो जाने के बाद भी ज्वाइनिंग नही दे रहा,* BPSC हर परीक्षा में कुछ गलत सवाल छाप देती है तो, BPSSC का पेपर लीक हो जाता है। STET, फिजिकल टीचर तथा अन्य कई ऐसे मुद्दे है, जिनमे अलग ही दाव पेच चल रहा।


क्यों हमारी प्रतियोगी परीक्षाएं लेने वाली ये संस्थाएं निष्पक्ष, नियमित और जवाबदेह नहीं है। क्यूं सरकार इस मुद्दे पर चुप्पी साधे है।

सर हमलोग ट्वीट पे ट्वीट किए जा रहे, मंत्री और उप मुख्यमंत्री के चक्कर लगा रहे, कोई नही सुन रहा, क्या करे सर आप ही बताइए, अब तो परीक्षा दे भी दिए पास भी कर गए और डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन भी करवा लिए, 7 महीने बीत गए ना ज्वाइनिंग मिल रहा ना ही कोई इससे संबंधित कोई नोटिफिकेशन ही आ रहा की ज्वाइनिंग देंगे भी की नही।


उपमुख्यमंत्री जी जिनके अंतर्गत नगर एवम आवास विभाग है वो भी कुछ नहीं कर पा रहे। उनकी बातो से लगता है की वेकेंसी ही रद्द हो जायेगी। एक संविदा की बहाली के लिए 2200 रुपया भी लिए सारा परीक्षा और डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन का ताम झाम भी करवाए और कुछ बता भी नही रहे।
सिटी मैनेजर अभ्यर्थी
🙏🙏
नगर एवम विकास विभाग बिहार


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