वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार |
देश की मौजूदा हालत पर रविश कुमार लिखते है कि मुंबई रेल ओवर ब्रिज की घटना दहलाने वाली है। सुरेश प्रभु और पीयूष गोयल दोनों मुंबई से आते हैं। दस साल से देख रहा हूं कि जब भी रेल बजट का समय आता है वहां की लोकल रेल की समस्याओं को काफी ज़ोर शोर से उभारा जाता था। इसके बाद भी एक महत्वपूर्ण जगह का ओवर ब्रिज अनदेखा रह जाता है। सुरेश प्रभु ने दूध पहुंचा कर, डाक्टर पहुंचा कर ट्वीटर पर वाहवाही तो ले ली मगर मूल काम के बारे में लगता है ज़ीरो रहे। तभी पीयूष गोयल नए नए लक्ष्यों का एलान कर रहे हैं. जैसे बहुप्रचारित बहुप्रशंसित सुरेश प्रभु कुछ करते ही नहीं थे। ओवर ब्रिज ठीक करने की मांग के संदर्भ में यूपीए के मंत्रियों का भी यही हाल था।
ऐसा नहीं कि लोग चुप थे। इसी फरवरी में कुछ लोगों ने ट्वीट कर आसन्न ख़तरे के प्रति आगाह किया था। शिवसेना के सांसद अरविंद सांवत और राज्यसभा सांसद सचिन तेंदुलकर ने भी फुटओवर ब्रिज को लेकर सवाल पूछा था। इन्हें एक साल पहले आश्वासन मिला था कि पांच नए ब्रिज बनेंगे। इस एक साल में मंज़ूरी के बाद भी टेंडर नहीं निकला यानी काम शुरू नहीं हुआ। सरकार किसी की भी हो, चाल वही है।मंत्रियों ने भी जवाबदेही का नया तरीका निकाल लिया है। नया स्लोगन रचो, नया ईवेंट करो। इस दुर्घटना ने उजागर किया है कि हमारी बुनियादी प्राथमिकताएं पुकार रही हैं। चीख रही हैं। एक लाख करोड़ के बुलेट ट्रेन से सीमित फायदा होगा। वह मेले का सामान है। बाकी सबके अपने अपने विचार हैं। पीयूष गोयल को पहले की उच्च स्तरिय जांच कमेटियों की रिपोर्ट सार्वजनिक कर देनी चाहिए। ख़ासकर कानपुर वाली, क्योंकि उसके बहुत दिन हो भी गए हैं। उसके नाम पर राजनीति कर वोट भी बटोरे जा चुके हैं।
टेलिकाम कंपनियां स्पेक्ट्रम की नीलामी का पैसा अब 10 साल की जगह 16 साल में चुकाएंगी। देर से चुकाने पर जुर्माने की दर भी कम कर दी गई है। फिर भी टेलिकाम कंपनियां संतुष्ठ नहीं हैं। रिलायंस जीओ आने के बाद इस सेक्टर में जो तबाही मची है उससे बाकी सारा सेक्टर और तेज़ रफ़्तार से ढहने लगा है। इस सेक्टर में काफी नौकरियां मिलती थीं। मगर अब यहां नौकरियां जा रही हैं, मिल नहीं रही हैं। टेलिकाम सेक्टर भी पांच लाख करोड़ के कर्ज़ के बोझ से दबा है। इकोनोमिक टाइम्स और बिजनेस स्टैंडर्ड की प्रमुख ख़बर यह है कि अप्रैल से अगस्त का वित्तीय घाटा 5लाख 25 हज़ार करोड़ रुपए का हो गया है। किसी भी पूर्ववर्ती साल के इन महीनों में इतना घाटा कभी नहीं रहा। मतलब सरकार के पास अपनी तरफ से अर्थव्यवस्था में पैसा डालने का स्कोप बहुत कम बचा है।
इंडियन एक्सप्रेस के इकोनोमी पेज पर ख़बर है कि इस साल के 18 सितंबर तक प्रत्यक्ष करों में 15.7 फीसदी की वृद्धि हुई है। वित्त मंत्री का दावा है कि यह नोटबंदी का असर है। उन्होंने यह भी बताया है कि 2012-13 में 4.72 करोड़ करदाता थे, 2016-17 में 6.26 करोड़ हो गए हैं। कर दाताओं के बढ़ने के दावों को भी चुनौती दी गई है। आप गूगल सर्च कर पढ़ सकते हैं और शायद मैंने भी अपने इस पेज पर उनके बारे में लिखा है। अख़बार के कोने में ख़बर छपी है कि सीएनजी के दाम में 16.5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की गई है। तीन साल में पहली बार दाम बढ़े हैं। क्या घरेलु गैस के दाम भी बढ़ेंगे? इस बारे में कोई सूचना नहीं है।
बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ओनजीसी के बोर्ड में तीन साल के लिए ग़ैर आधिकारिक निदेशक के तौर पर नियुक्त हुए हैं। इनकी नियुक्ति नियुक्तियों की कैबिनेट कमेटी जैसी सर्वोच्च संस्था से हुई है। बधाई। इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर है। यूपीए के समय भी इस तरह की नियुक्तियां होती रही हैं। देश बदल रहा है का नारा था, इसे बदल कर नया नारा कर देना चाहिए। जो चल रहा था, वही चल रहा है।
सौभाग्य योजना के दावों और पैकेजिंग को लेकर समीक्षात्मक लेख छपे हैं। क्या भारत के प्रधानमंत्री पहले से चल रही योजनाओं की ही पैकेजिंग कर पेश करते हैं? प्रधानमंत्री ने घोषणा की है कि 2018 के अंत सभी गांवों में बिजली पहुंचेगी। सरकार चार करोड़ ग़रीब परिवारों को मुफ्त बिजली का कनेक्शन देगी जिनके यहां बिजली नहीं है। नवंबर 2014 में प्रधानमंत्री ने दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना लांच की थी। खेती और घरेलु बिजली के उपभोग के लिए अलग कनेक्शन देने की बात थी। सौभाग्य और ग्राम ज्योति योजना के लक्ष्य एक ही लगते हैं। Thewire पर इस बारे में लंबी रिपोर्ट छपी है। सरकार के पुराने दावों और ख़बरों को खंगालते हुए लिखा गया है। आप भी थोड़ी मेहनत कीजिए और देखिए।
कितने घरों में बिजली नहीं है, इसके आंकड़ों को लेकर सरकार ही आश्वस्त नहीं है। मोदी कहते हैं कि भारत में 20 प्रतिशत परिवारों के पास बिजली नहीं है। नीति आयोग का आंकड़ा कहता है कि 30 अप्रैल 2017 तक 17,94,09,912 परिवारों में से 13, 38,38,603 परिवारों यानी 74.6 प्रतिशत के पास बिजली पहुंच गई है। यानी अभी तक 25.4 प्रतिशत परिवारों के पास बिजली नहीं है।
एक और आंकड़ा है कि दीन दयाल उपाध्याय योजना की वेबसाइट बताती है कि बीपीएल परिवारों की कुल संख्या है 4, 37,83,00। इनमें से 2,68,50,000 यानी 61 फीसदी परिवारों के पास बिजली पहुंच गई है। अगर दिसंबर 2019 तक सभी घरों को बिजली से जोड़ना है तो हर महीने पांच लाख तीस हज़ार परिवारों को कनेक्शन देना होगा।
बिहार के युवाओं से संक्षिप्त संवाद, BSSC के बहाने - रवीश कुमार
रवि नायर ने इसके बार गर्व GARV का आंकड़ा चेक किया है। यहां दावा किया गया है कि 31 दिसंबर 2016 तक 13 करोड़ 62 लाख 58 हज़ार परिवारों को बिजली दे दी गई है। यह आंकड़ा नीति आयोग के दावे से 24 लाख 19 हज़ार अधिक है। जबकि नीति आयोग का आंकड़ा 31 दिसंबर 2016 से आगे 30 अप्रैल 2017 तक का है। अब आप बताइये कौन सच बोल रहा है। खेल हो रहा है या खिलवाड़ हो रहा है।
अलग अलग प्लेटफार्म पर अलग अलग आंकड़े हैं। दावे हैं। अच्छा है कि धारणा की जगह आंकड़ों के आधार पर सरकार के काम की समीक्षा हो रही है। जल्दी ही आंकड़ों पर भी पहरेदारी हो जाएगी ताकि सच्चाई का पता ही न चले। आप अगर पूरी रिपोर्ट को धीरज से पढ़ें तो पता चल जाएगा कि आपको रामलीला दिखा कर सरकार कुछ और लीला कर रही है। लिखिये तो लोग लिखते हैं कि यह कोई मोदी विरोध की फैक्ट्री है।
वैसे एक अच्छी ख़बर है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या में भव्य दिवाली मनाने जा रहे हैं। सरयु के किनारे लाखों द्वीप प्रज्वलित किए जाएंगे। रामायण के कलाकारों का सम्मान होगा। रोड शो होगा। दीवाली के दिन की ख़बरें इसी के आस पास होंगी। अहा, कितना भव्य और रोचक होगा। प्राथमिकताएं अगर सही हों तो गर्व तो होना ही चाहिए। बिजनेस और व्यापारी जो इन दिनों अपने डूबते धंधे को लेकर निराश हैं, उन्हें भी अयोध्या जाना चाहिए। सार्वजनिक उत्सवों में शामिल हो जाने से निराशा मिट जाती है। जोश आ जाता है।
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