2 G घोटाले के फैसले पर रवीश कुमार ने सवाल उठाते हुए कहा कि जज ओ पी सैनी के फैसले को ठीक से नहीं पढ़ा गया है। 1552 पन्नों के जजमेंट को पढ़ने पर पता चलता है कि क्या गेम हुआ है। 1544 नंबर पेज पर जो लिखा है, उसका हिन्दी अनुवाद पेश कर रहा हूँ। इस पैराग्राफ़ को पहले दिन से कोट किया जाता तो इस फैसले के बारे में तस्वीर और भी साफ होती। हैरान हूँ कि 2 जी फैसले में सब बरी हो गए मगर किसी ने भी ट्रोल नहीं किया। आई टी सेल के लोगों ने लालू के जेल जाने की तरह ट्रोल नहीं किया। अनिल अंबानी की कंपनी के अधिकारियों को क्या इसलिए बचाया गया ताकि रफाल डील पर सवाल न उठे।
आप नीचे दिए गए पैराग्राफ़ को पढ़िए और देखिए कि किस बेशर्मी से लोगों को बचाया गया है। क्या 1 लाख 76 हज़ार करोड़ का आपस में बँटवारा कर लिया गया है ? जज ओ पी सैनी ने सीबीआई के ख़िलाफ़ क्या लिखा है।
" पता करना मुश्किल है कि अभियोजन पक्ष क्या साबित करना चाहता है। अंत तक आते आते अभियोजन पक्ष का स्तर पूरी तरह से गिरने लगा, दिशाहीन हो गया और सामने आने से बचने लगा। इसके बारे में बहुत लिखने की ज़रूरत नहीं क्योंकि जिस तरह से सबूतों को आगे बढ़ाया जा रहा था, उसी से बहुत सी बातें साफ हो जाती हैं। फिर भी अभियोजन पक्ष के बर्ताव के बारे में कुछ उदाहरण ही काफी हैं। अभियोजन की तरफ से कई तरह के जवाब और आवेदन फ़ाइल किए गए। बाद के चरणों में जब केस नतीजे की तरफ बढ़ रहा था तब कोई भी वरिष्ठ अधिकारी इन आवेदनों और जवाबों पर दस्तख़त करने के लिए तैयार नहीं था। उन पर कोर्ट में पदस्थापित जूनियर इंस्पेक्टर मनोज कुमार से साइन कराया गया। पूछने पर वरिष्ठ वकील का यही जवाब होता कि स्पेशल वकील( पीपी) साइन करेंगे और जब स्पेशल पब्लिक प्रोस्यूक्यूटर से पूछा जाता तो जवाब मिलता कि सीबीआई के लोग साइन करेंगे। इससे पता चलता है कि न तो जाँच करने वाला और न ही अभियोजन पक्ष की तरफ से केस लड़ने वाला इस बात की ज़िम्मेदारी लेने को तैयार था कि कोर्ट में क्या जवाब/ याचिका फ़ाइल की जा रही है।"
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