वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार टीवी चैनलों की आलोचना करते हुए लिखते है कि आप सब टीवी की आलोचना में
बार बार टी आर पी का जिक्र करते हैं और आरोपी बनाते हैं। ज़्यादातर लोगों
को टी आर पी
के बारे में कुछ पता नहीं होता। पिछले दिनों मैंने टी आर पी का
आंकलन करने वाली बार्क के प्रमुख पार्थो दासगुप्ता के लेख की समीक्षा पेश
की थी। आप मेरे पेज पर जाकर पढ़ सकते हैं।
कैरवान पत्रिका का लेख
लंबा है मगर इसे पढ़ते हुए आप टीआरपी को थोड़ा समझेंगे। टी आर पी किसी एक
मीटर से भी आ सकती है । जैसा कि इस लेख से पता चलता है। कुल मिलाकर दो से
दस मीटर घरों से रेटिंग आती है। सौ मीटर घर भी हो तो भी क्या आप इतने बड़े
देश में सौ मीटर घरों के प्रोजेक्शन से तय कर पाएँगे कि इतने लाख लोगों ने
कूड़ा शो देखा और वो नंबर वन है। यह खेल ज़माने से हो रहा है। इस टी एक पी
के कारण पत्रकारिता बर्बाद हुई और अब इसके ज़रिए लोकतंत्र बर्बाद किया जा
रहा है।
अगर आपके घर टीआरपी
मीटर नहीं है तो आप न्यूज़ चैनलों के लिए न तो दर्शक हैं और आपकी राय
चैनलों के लिए मायने रखती है। आप दर्शक होने का भ्रम पालते हैं और बदले में
अपनी जेब से ढाई सौ से पाँच सौ रुपये देते हैं। ये दुनिया का अकेला बिजनेस
है जो अपने ग्राहक दर्शक को लात भी मारता है और बदले में पैसे भी लेता है।
जब मैं कहता हूँ कि टीवी न देखें तो उसका कारण यही है। आप चैनलों
की गिनती में नहीं हैं लेकिन पैसा देकर रोज़ फेसबुक पर चिल्ला रहे हैं कि
हम दर्शक हैं हम दर्शक हैं। जब तक आपके घर में टी आर पी मीटर नहीं है तब तक
आप दर्शक हो ही नहीं सकते हैं। टी आर पी बिल्कुल नोटबंदी की तरह है। आपको
लाइन में खड़ा कराएगा, आपका पैसा और वक्त बर्बाद करेगा और आपसे कहलवाएगा कि
आप देश के लिए त्याग कर रहे हैं।
ख़ैर इस लंबी रिपोर्ट को वक्त
निकाल कर पढ़िए। आपके पढने और मेरे बोलने से टीवी की दुनिया को कोई फर्क
नहीं पड़ने वाला। उल्टा हम जैसे लोग इससे बाहर ही कर दिए जाएँगे लेकिन आप
पढ़ेंगे तो आपके जीवन का कुछ समय कुछ जानने में ही व्यतीत होगा। चैनल देखकर
बर्बाद नहीं होगा।
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