यह देश कैसा है तब पता चलता है जब थाना पुलिस और कोर्ट का चक्कर लगता है - रवीश कुमार

रवीश कुमार 


यह देश कैसा है तब पता चलता है जब थाना पुलिस और कोर्ट का चक्कर लगता है। उसकी भयावहता असीमित है। आप कभी तक क़िस्मत वाले हैं जब तक इनसे बचे हैं। इसलिए फँसाने की राजनीति में इन सबका इस्तमाल होता है। दूसरा अगर आप लड़की हैं और ससुराल नामक फ़ैक्ट्री में दहेज के कारण फँस गईं है तो आपकी मुश्किलों का क्या वर्णन किया जाए। 




बिहार से पत्र लिखने वाले छोटे भाई ने जगह का नाम तो नहीं दिया है लेकिन इस पत्र को ध्यान से पढ़ें। संदर्भ से लेकर रेफ़्रेंस प्वाइंट तक। ऐसे कई पत्रों को देखता रहता हूँ। जिनके अंत में आत्महत्या की बात होती है। दो कारणों से। एक तो वाक़ई ऐसी मायूसी छा जाती होगी और दूसरा उसे भ्रम होता है कि आत्महत्या की बात लिख देने से किसी को फ़र्क़ पड़ेगा। किसी को फ़र्क़ नहीं पड़ता है। फ़र्क़ पड़ता तो संस्थाएँ इस तरह से प्रताड़ित ही नहीं करती कि आप आत्महत्या की सोचते हैं। एक और ट्रेंड है। ई मेल लिखने का। सिस्टम के लोगों को लाखों ईमेल लिखे जाते होंगे। लगता है उनका कुछ नहीं होता। यक़ीनन कुछ नहीं होता है।


हम एक लोअर मिडिल फ़ैमिली से बिलान्ग करते हैं और हमारी सिस्टर की शादी किए थे जहाँ, वहाँ पर हमारी दीदी को मारते थे। उसे टार्चर करते थे। हमलोगों ने FIR दर्ज की केस भी चल रहा है और 6-7 महीने से कुछ नहीं हुआ है। कोर्ट में समझौता होने के लिए गए थे तो उसके हसबैंड ने जान से मारने की कोशिश की। अब हमारी माँ और दीदी रोज़ थाना जाते हैं। तब भी कोई एक्शन नहीं होता। हम एस पी आफिस गए तब भी कुछ नहीं हुआ। सर, हमने बिहार के सीएम को ईमेल किया। एस पी, जी एस पी को तब भी कोई जवाब नहीं आया। न कोई एक्शन लिया गया। यहाँ तीन तलाक़ पर बहस होती है वैसे पर हम हिन्दू फ़ैमिली से बिलान्ग करते हैं। उसके लिए तो लगता है कुछ क़ानून ही नहीं है। प्लीज़ सर, आप से कुछ हो सके तो प्लीज कर दीजिए। कहीं हमारी दीदी सुसाइड न कर ले। हताश हो गई है। जगह जगह जाकर। पर कहीं कुछ नहीं हो रहा। रोती है । 

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