रवीश कुमार वरिष्ठ पत्रकार |
सरकार को अपने फ़ैसले पर विचार करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद परीक्षार्थियों की चिन्ता और बढ़ गई है। सरकार और कोर्ट को फिर से सोचने की ज़रूरत है कि यह फ़ैसला किशोर उम्र के बच्चों से संबंधित है। कोर्ट से पहले सरकार को उनकी चिन्ताओं पर ध्यान देना चाहिए था। कई अलग-अलग कारणों से बच्चे परेशान हैं। आशंकित हैं।
कोर्ट के फ़ैसले के बाद भी उनकी परेशानी हल नहीं हुई है। मेरे पास यह जानने का कोई तरीक़ा नहीं कि पचीस लाख परीक्षार्थियों में से कितने परीक्षा के पक्ष में हैं और कितने विरोध में। लेकिन इनकी चिन्ताओं को दूर करने का ठोस आश्वासन दिया जाना चाहिए था। बच्चे बहुत परेशान है।
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कोयंबटूर में एक छात्रा ने आत्महत्या कर ली है। आप सभी से निवेदन है कि अपनी चिन्ताओं को इस हद तक न ले जाएँ। काउंसलर से संपर्क करें। केंद्र सरकार ने भी मनोदर्पण नाम से वेबसाइट बनाई है। परीक्षा के तनावों को दूर करने के लिए एग्ज़ाम वारियर्स पढ़ें। प्रधानमंत्री मोदी ने लिखी है। अस्सी रूपये में एमेज़ान पर मिल जाएगी। उनकी सरकार ने भिन्न परीक्षकों तनावों को दूर करने के लिए भले ख़ास न किया हो मगर यह किताब लिख कर आपको लोगों को मार्गदर्शन देने का काम किया है।
उम्मीद कीजिए की सरकार शायद कुछ विचार करें मगर सारा समय इसी में न लगा दें। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद सरकार परीक्षा कराएगी। सरकार ने कोर्ट में परीक्षा कराने के हक़ में ही सारी बातें रखीं हैं। छात्रों में तनाव सरकार के कारण ही है। कई राज्यों में इस पर कोई क़ाबू नहीं पाया गया। अस्पताल बेहतर नहीं है।
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कोरोना की खबरों को पढ़ कर छात्र चिंतित होंगे ही। उन्हें कुछ हो गया तो कौन आगे आकर ज़िम्मेदारी लेगा। इसलिए फिर से गुज़ारिश की जा रही है कि वह अपने फ़ैसले पर विचार कर ले। NEET और JEE के छात्रों का तनाव कम करे। उनकी सुने। सितंबर की जगह नवंबर में इम्तहान होने से कुछ नहीं होगा।
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