क्या फसल बीमा योजना में हर साल 5.5 करोड़ ‘नए’ किसान जुड़ते हैं? - रवीश कुमार



वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार लिखते है कि, किसी संख्या में नई संख्या के जुड़ने का यही मतलब होगा कि पुरानी संख्या में नई संख्या जुड़ी है। जब कृषि मंत्री कहते हैं कि प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना में हर साल 5.5 करोड़ नए किसान जुड़े हैं तो ऐसा लगता है कि पहले साल की तुलना में दूसरे साल कुल संख्या 11 करोड़ हो गई। जबकि ऐसा नहीं है। 



हर साल 5.5 से 6.10 करोड़ किसान इस योजना में जुड़ते हैं और हर साल संख्या इतनी ही रहती है। किसानों को हर साल बीमा कराना होता है। हर साल बीमा कराने वाले किसानों की संख्या उतनी होती है। तो आप यह नहीं कह सकते कि इस साल नए किसानों ने बीमा कराया।


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दूसरा सरकार दावा करती है कि पाँच सालों में 29 करोड़ किसानों ने बीमा कराया गया। यह आँकड़ा भी भ्रामक है। मान लीजिए कोई व्यक्ति हर साल बीमा कराता है।क्या उसे पाँच बार जोड़ कर कहा जा सकता है कि पाँच साल में पाँच लोगों ने बीमा कराया? भारत में किसान परिवारों की संख्या 14.5 करोड़ मानी जाती है। इस लिहाज़ से हर साल बीमा कराने वाले किसानों की संख्या 5 से 6 करोड़ ही है। हर साल इतने ही किसान बीमा कराते हैं न कि नए किसान। ऐसा होगा तब 2016 में अगर पाँच करोड़ किसानों ने बीमा कराया और इसमें अगले साल पाँच करोड़ नए किसान जुड़ गए तो 2017 में संख्या 11 करोड़ होनी चाहिए। लेकिन ऐसा तो होता नहीं है। 



आँकड़ों की बाज़ीगरी यही है। जो सामने दिखता है हमेशा वही नहीं होता। इसी तरह से सरकार यह तो बताती है कि पाँच साल में बीमा के क्लेम के रूप में 90,000 करोड़  की राशि दी गई। पर यह पैसा तो बीमा कंपनियों ने दिया। सरकार ने नहीं।सरकार को बताना चाहिए कि केंद्र सरकार ने कितना और राज्य सरकार ने प्रीमियम के तौर पर कितनी राशि दी? क्या प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना में सिर्फ़ केंद्र सरकार प्रीमियम देती है? 


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दूसरा सरकार को बताना चाहिए कि बीमा कराने वाले किसानों में कितने किसान क्लेम का दावा करते हैं और उनमें से कितने किसानों को क्लेम मिलता है? कितनों को समय से मिलता है? 


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कृषि क़ानूनों के विरोध में किसान आंदोलन कर रहे हैं। इसके विरोध में सरकार ने खुद को प्रचार युद्ध में झोंक दिया है। हर दिन कुछ नए आँकड़े पेश किए जाते हैं। उन आँकड़ों में इसी तरह की बाज़ीगरी होती है। सही लगते हुए भी पूरे नहीं होते हैं। उसे जाँचने परख के लिए काफ़ी मेहनत करनी पड़ती है। 



सरकार फ़सल बीमा को लेकर कितना भी दावा कर लें ज़मीन पर हक़ीक़त वैसा नहीं है। अगर होती तो बिहार और गुजरात जैसे राज्य इस योजना से अलग नहीं होते। इन आँकड़ों को समझना और पकड़ना आसान नहीं है। लेकिन सरकार को यह बाज़ीगरी क्यों करनी पड़ती है? 

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